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ऐसे बढ़ाएं नेचर की स्ट्रेंथ | Strength of Nature

Strength of Nature

नमस्कार दोस्तों, आशा करते हैं आप सब स्वस्थ होंगे। हों भी क्यों न। आपके लिए हम इतनी अच्छी जानकारियां जो लेकर आते हैं। हम जानते हैं हमारे आर्टिकल पढ़कर आपका मन खुश हो जाता होगा। जब हम खुश रहते हैं तो हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। क्यों सही कहा ना? आज भी हम हाजिर हैं आपके बीच एक अनोखी जानकारी की पोटली Strength of Nature लेकर।

आप सब जानते हैं, आज के समय में घर से बाहर निकलना कितना रिस्की है। ज़रा सी चूक हुई नहीं, कि कोरोना तुरंत आपको हैलो बोलने आ जाएगा। इससे बेहतर यही है कि हम घर पर रहकर प्रकृति के साथ कुछ समय बिताएं। हमारी प्रकृति ने हमें लाखों पेड़ पौधे जीवजंतु दिए हैं जिन्हें हम अपना दोस्त बना सकते हैं। उनसे बातें कर सकते हैं। उनसे अपने दिल की बात शेयर करके अपना मन हलका कर सकते हैं।

हम सभी को प्रकृति के इन विभिन्न रूपों का सम्मान और आदर करना चाहिए। साथ ही इनकी किसी इंसान की तरह ही देखभाल करनी चाहिए। शोधकर्ताओं के अनुसार वर्ष 2020 जहां हम इंसानों के लिए बेहद दुखदाई रहा तो वहीं प्रकृति के लिए सबसे स्वच्छ साबित हुआ है। लॉक डाउन के कारण हमारी प्रकृति Strength of Nature पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा है। खास कर उन क्षेत्रों में पर्यावरण बेहद स्वच्छ हो गया हैए जहाँ लोगों कम आते जाते हैं।

Strength of Nature

संयुक्त राष्ट्र ने विश्व पर्यावरण दिवस पर लोगों को संबोधित किया है। इसमें कहा गया कि अब समय आ चूका है की हम अपने पर्यावरण को लेकर सतर्क हो जाएं। पिछले कई दशकों में 8 लाख से भी अधिक पेड़-पौधे विलुप्त हो चुके हैं। साथ ही कुछ जानवरों की प्रजातियां भी लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। हमे प्रकृति के इस वरदान को बचाना होगा।

विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास

आज पूरा विश्व 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाता है। क्या आप जानते हैं कि इसे मनाना कब शरू किया गया था और इसका उद्देश्य क्या था? चलिए हम बताते हैं। दरअसल पूरे विश्व में आम नागरिकों को पर्यावरण की देखभाल और सुरक्षा के प्रति जागरुक करने के लिए, पर्यावरण से संबंधित कुछ मुद्दों को सुलझाने के लिए कुछ पर्यावरणीय कार्यवाही को लागू करवानाए साथ ही पूरे विश्व को स्वास्थ्य और हरित पर्यावरण का महत्व समझाने के उद्देश्य से ही 5 जून 1973 को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की गई। ऐसा करना जरूरी भी था।

कुछ लोगों का मानना है कि पर्यावरण Strength of Nature की सुरक्षा करना केवल और केवल सरकार की जिम्मेदारी है। या फिर कुछ निजी संगठनों जैसे एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ही जिम्मेदारी बनती है कि वो पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करें। लेकिन ये आप की भी जिम्मेदारी बनती है दोस्तों। क्योंकि आप भी इसी समाज का हिस्सा हैं और यह पर्यावरण भी। पूरे समाज की जिम्मेदारी है कि अपने पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाए रखें। आपके बच्चे जब स्कूल जाते हैं या किसी पार्टी में जाते हैं तो आप कैसे उन्हें ‘राजा बाबू’ बनाकर तैयार करते हैं। बस यही आपको पर्यावरण के साथ करना है। इस खूबसूरत दुनिया की खूबसूरती इस पर्यावरण से ही है। जब तक हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ नहीं रखेंगे तब तक हम तरक्की की राह पर आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ प्रभावकारी कदमों को लागू करने के लिये राजनीतिक और स्वास्थ्य संगठनों काे आगे आना होगा। तभी हम पर्यावरण की रक्षा कर सकेंगे। इसी उद्देश्य से इस दिवस को उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। स्कूल और काॅलेजों में पेड़-बचाओ, जल-बचाओ जैसे विषयों पर बच्चों से पेंटिंग काॅम्पीटीशन, स्पीच काॅम्पीटीशन, स्लोगन राइटिंग आदि कार्यक्रम करवाए जाते हैं।

इस काम में मीडिया भी अपनी सक्रीय भूमिका निभाता है। समाचारों के बीच बीच में इस दिन को उत्सव के रूप में मनाने के लिए लोगों को प्रेरित करता है और लोगों को जागरूक करता है। आज हम अपने स्वार्थ के लिए पेड़ों को काट रहे हैं। पाॅलीथीन का ज्यादा से ज्यादा यूज कर रहे हैं। इससे हमारी प्रकृति को काफी ज़्यादा नुकसान पहुंच रहा है। कभी आंधी, कभी तूफान तो कभी बाढ़ जैसे हालात हर रोज पैदा हो रहे हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ का ही नतीजा है कि हमें आज ग्लोबल वाॅर्मिंग का शिकार होना पड़ रहा है।

चलिए आपको कुछ कथनों के बारे में बताते हैं जो महान लोगों ने पर्यावरण Strength of Nature के लिए कहे हैं। अल्बर्ट आइंस्टाइन कहते हैं ‘‘पर्यावरण सब कुछ है जो मैं नहीं हूं।’’ इसके अलावा महात्मा गांधी ने पर्यावरण के महत्व को समझाते हुए कहा था ‘‘पृथ्वी हर व्यक्ति की जरूरत को पूरा करती है लेकिन हर व्यक्ति के लालच को नहीं।’’ महात्मा गांधी ने यह भी कहा ‘‘विश्व के जंगलों से हम आखिर क्या कर रहे हैं? केवल एक शीशे का प्रतिबिंब ही तो है जो हम अपने तथा एक दूसरे के साथ कर रहे हैं।’’

दोस्तों, हमारी करनी आज हम पर ही भारी पड़ रही है। जब तक हम पृथ्वी Strength of Nature की सबसे अधिक जरूरत जल को दूषित होने से नहीं बचाएंगे तब तक हमें कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कारखानों से निकलने वाला विषैला पानी, सीवर का गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित होने वाले मल को हमारी स्वच्छ नदियों में प्रवाहित होने से बचाना होगा। ये जो धर्म के नाम पर गंगा घाटों में फूल, मालाएं और अस्थियां प्रवाहित कर दी जाती हैं उस पर भी रोक लगानी होगी।

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इसके अतिरिक्त उसी दूषित जल को सिंचाई के काम में भी लाया जाता है। इससे उपजाऊ भूमि भी दूषित तथा विषैली हो जाती है। ऐसे में जो फल और सब्जियां इस भूमि पर उगती हैं वो भी पोषक तत्वों से विहीन हो जाती हैं। फिर जब हम इन फल एवं सब्जियों को खाते हैं तो हमारे शरीर में मौजूद रक्त भी दूषित हो जाता है और हमें कई सारी बीमारियां घेर लेती हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें निश्चित तौर पर वसुधैव कुटुम्भकम की भावना रखनी होगी। अकसर देखा जाता है कि लोग अपने घरों का कचरा डस्टबिन में डालने की बजाए बगल के खाली मैदान या फिर पड़ोसी की नजर बचाकर उसके घर के बाहर डाल देते हैं। फिर जब पड़ोसी उनसे सवाल करते हैं कि यह कूड़ा किसने गिराया तो ऐसे अनजान और भोले बन जाते हैं कि जैसे इनसे शरीफ इंसान तो पूरी दुनिया में कोई है ही नहीं।

इसके अलावा हमें इंधन और बिजली की भी बचत करनी सीखनी पड़ेगी। हम सोलर पैनल का यूज करके बिजली की बचत कर सकते हैं। हमें नए जल निकासी तंत्रों का भी विकास करना चाहिए। हमें पर्यावरण के संरक्षण के लिए जंगलों के प्रबंधन पर भी ध्यान देने की जरूरत है। अगर जंगल नहीं होंगे तो हम खुद तो असुरक्षित रहेंगे ही साथ ही प्रकृति को भी नुकसान पहुंच सकता है।

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तो दोस्तों उम्मीद है आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा और आप पर्यावरण को बचाने के लिए केवल सरकार पर ही निर्भन न रहकर खुद भी प्रयास करेंगे।

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