ये है भारत का वृक्ष पुराण | Vriksh Puran

दोस्तों, प्रकृति ने हमें बहुत सी अनमोल वस्तुएं दी हैं। इनमें से एक हैं पंच महापूत जिसमें शामिल हैं वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और नभ। कहते हैं मनुष्य का शरीर इन्हीं पंच महापूतों से मिल कर बना है। इसका जिक्र आपने दूरदर्शन पर आने वाले सीरियल ‘शक्तिमान’ में जरूर सुना होगा। इसके अलावा प्रकृति से जो अमूल्य चीज़े हमें वरदान के रूप में मिली है वो हैं पेड़। हमारे जीवन में पेड़ों vriksh puran का बहुत अधिक महत्व है।

पेड़ों से हमें ऐसी कई वस्तुएं मिलती हैं जो हमारे जीने के लिए सहायक हैं। पेड़ों से ही हमें ऑक्सीजन मिलती है जिसके बिना जीने की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारे ब्रेन में हो रहे कैमिकल लोचे ने हमें केवल अपना स्वार्थ सोचने और साधने पर ही मजबूर कर दिया है। हम अपने स्वार्थ के कारण इन पेड़ों को काटने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

भारतीय संस्कृति में पेड़ों को बहुत ही विशेष स्थान दिया गया है। पेड़ों के महत्व के बारे में हमारे vriksh puran पुराणों में भी बहुत सी बातें बताई गई हैं। भारत में पेड़ों की रक्षा की जाती है। बहुत से स्थानों में पेड़ों को पूजा भी जाता है। इन्हें प्रकृति का वरदान समझा जाता है। अगर कोई उन्हें ना काटे तो कुछ सालों में अपनी उम्र पूरी होने के बाद पेड़ भी मर जाते हैं बहुत से ऐसे पेड़ हैं जो हजारों वर्षों से जीवित हैं और लोगों की आस्था का केंद बने हुए हैं। आज भी फल.फूल रहे हैं।

आज हम आपको ऐसे पेड़ों के बारे में बताने जा रहे हैं जोकि उम्र के मामले में हम इंसानों को भी पीछे छोड़ चुके हैं। फ्रेंड्स, जिस प्रकार हम इंसानों की उम्र होती है। जैसे हम एक निश्चित उम्र तक इस धरती पर जीवित रहते हैं। ठीक उसी प्रकार इन पेड़ों की भी उम्र होती है। कुछ लोगों का मानना है कि पेड़ निर्जीव हैं। लेकिन ये पेड़ सजीव vriksh puran होते हैं। काटे जाने पर इन्हें भी दर्द होता है। दुनिया में एक ऐसा पेड़ भी है जिसकी आंख से आंसू निकलते हैं अगर कोई उसकी डाल को काटने आता है। चलिए आपको बताते हैं भारत के सबसे पुराने पेड़ों के बारे में।

Vriksh Puran

कोलकाता का बरगद का पेड़

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आप सभी जानते हैं कि कोलकाता शहर अपने स्वादिष्ट व्यंजनों जैसे मिष्ठी दोई, रोशो गुल्ला, सौंदेश मिठाई और माछी भात के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां पर कई ऐसे स्थल हैं जिन्हें देखने के लिए दूर दराज से लोग यहां पर देखने आते हैं। इन्हीं में से एक है दुनिया का सबसे विशाल बरगद vriksh puran का पेड़। यह पेड़ स्थित है कोलकाता के आचार्य जगदीश चंद्र बोस बोटेनिकल गार्डन में। करीब 1783 में इस गार्डन की स्थापना के वक्त ही यहां पर बरगद का पेड़ लगाया गया था। उस समय यह पेड़ करीब 20 वर्ष का था।

आज के समय में अगर इस वृक्ष की उम्र का अनुमान लगाया जाए तो यह कम से कम 254 वर्ष पुराना हो चुका है। अगर इस पेड़ को दूर से देखें तो लगेगा कि जैसे आप किसी बहुत बड़े और घने जंगल के बीच आ गए हैं। लेकिन पास से देखने पर समझ में आ जाएगा कि यह एक ही वृक्ष vriksh puran है जिसकी जटाएं, जड़े और तने चारों ओर फैल चुके हैं।

इस विशालकाय पेड़ को ‘द ग्रेट बनियन ट्री’ के नाम से भी जाना जाता है। इस बरगद को देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी लाखों टूरिस्ट हर वर्ष कोलकाता के इस बोटैनिकल गार्डन में आते हैं। कहते हैं कि इस बरगद से निकली जटाएं और शाखाएं पानी की तलाश करते करते नीचे जमीन की ओर बढ़ती ही चली गईं। यही बाद में जड़ के रूप में पेड़ को पानी एवं सहारा देने लगी। वैज्ञानिकों के अनुसार vriksh puran यह पेड़ दुनिया का पहला ऐसा पेड़ है जो काफी बड़ा और चैड़ा है। बात करें इसके फैलाव की तो यह पेड़ लगभग 14500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है।

हैरान कर देने वाला तथ्य यह है कि इस बरगद की 3300 से अधिक जटाएं पूरी तरह से जड़ का रूप ले चुकी हैं। इसी बरगद पर 87 अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों ने अपना घर बनाया है। वर्तमान में इसके मूल तने की परिधि 18.9 मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इस वृक्ष की सबसे ऊंची शाखा 24 मीटर तक लंबी है। इसकी जड़ें जो जमीन तक पहुंच गई हैं उनकी संख्या 3372 के आस पास है। वर्ष 1884 तथा 1987 में दो तूफानों ने कोलकाते में दस्तक दी जिससे इस वृक्ष vriksh puran को काफी नुक्सान पहुंचा था।

वर्ष 1925 में इस बरगद की मुख्य शाखा में फंगस भी लग गया था। इस कारण उसकी मुख्य शाखा को काटना पड़ा था। वो वृक्ष आज भी उसी शान से इस गार्डन में खड़ा हुआ है। गिनीज़् बुक ऑफ वल्र्ड रिकाॅड में भी इस वृक्ष का नाम दर्ज है। एक बेहद रोचक तथ्य यह भी है कि इस विशाल वृक्ष के सम्मान में 1987 में भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था। इस बरगद को बोटाॅनिकल सर्वे ऑफ इंडिया का प्रतीक चिह्न भी माना जाता है।

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प्रयागराज का अक्षय वट

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देश ही नहीं, विदेश में भी भारत का यह प्रयागराज स्थान जाना जाता है संगम के लिए। यहां पर मौजूद संगम में गंगा, जमुना और सरस्वती का पानी बहता है। तीनों पानी का रंग अलग-अलग है। इसे देखने के लिए हर वर्ष लाखों लोग प्रयागराज आते हैं। यह एक बहुत ही पवित्र स्थान है। यहां की एक और खास पहचान है। दरअसल, इसी स्थान पर स्थित है विशालकाय अक्षय वट वृक्ष

दोस्तों, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां हर साल कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ के दौरान संगम में स्नान करने के बाद जब तक आप इस अक्षय वृक्ष vriksh puran के दर्शन नहीं हो जाते और इसकी पूजा नहीं की जाती तब तक आपका कुंभ स्नान अधूरा माना जाता है। चलिए आपको बताते हैं कि यह वृक्ष कहां पर है। यह वृक्ष मुगल सम्राट अकबर के किले के अंदर बने पातालपुरी मंदिर में स्थित है। इस अक्षय वट मंदिर को दुनिया का सबसे पुराना मंदिर होने का गौरव भी प्राप्त है।

हमारे पुराणों में दर्ज है कि जब एक बार किसी ऋषि ने भगवान विष्णु को ईश्वरीय शक्ति का प्रदर्शन करने की चुनौती दी तो उन्होंने पल भर के लिए पूरे विश्व को जल मग्न कर दिया था। हालांकि उसके बाद इस पानी को भगवान ने गायब भी कर दिया था। कहते हैं कि जब सारी वस्तुएं पानी में समा गई थीं तब इस बरगद का ऊपरी भाग साफ दिखाई दे रहा था। इसी कारण इस वृक्ष को बहुत ही प्राचीन और विशेष माना गया है।

एक दंत कथा यह भी है कि एक बार मुगलों ने इस अक्षय वट वृक्ष को जला दिया था। क्योंकि उन्हें इस वृक्ष की पूजा करने के लिए इस किले में लोगों का आना पसंद नहीं था। ऐसा कहते हैं कि इस वृक्ष के नीचे जो भी इच्छा आप व्यक्त करेंगे वो पूरी होगी। वन जाते समय भगवान राम और मां सीता ने इस वट वृक्ष के नीचे तीन दिनों तक निवास किया था। इस वृक्ष का संबंध हिन्दू धर्म के अलावा जैन तथा बौधों से भी बताया जाता है। मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट इसी वृक्ष का एक बीज बोया था। जैन धर्म के अनुसार उनके तीर्थंकर रिषभ देव ने इसी वृक्ष vriksh puran के नीचे तपस्या की थी। इसी स्थान को रिषभ देव तप स्थली के नाम से भी जानते हैं। इस वृक्ष की उम्र करीब 700 वर्ष है।

शुक्रताल का अक्षय वट वृक्ष

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर शहर से तीस किलोमीटर दूर गंगा के तट पर स्थित है सुख तीर्थ। जिसे शुक्रताल के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान का धार्मिक महत्व लगभग 5000 वर्ष से भी पहले से है। कहते हैं यहां पर स्थित अक्षय वट वृक्ष महाभारत कालीन है।

दिल्ली से इस स्थान की दूरी लगभग 150 किलोमीटर दूर की है। कहते हैं, जिसने भागवत शास्त्र  vriksh puran का ज्ञान प्राप्त कर लिया उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी उद्देश्य से सम्राट अर्जुन के पौत्र महाराज परीक्षित को शुकदेव जी महाराज द्वारा भागवत शास्त्र का ज्ञान दिया गया था। यहीं पर राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति भी हुई। इसी स्थान से भागवत कथा सुनाने की शुरूआत होती है। कहा जाता है कि जब अश्वथामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। तब सुदर्शन चक्र के द्वारा भगवान विष्णु ने जिस बालक की गर्भ में रक्षा की थी ये वही बालक राजा परीक्षित थे। आज भी यह अक्षय वट वृक्ष लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। यहीं पर 5100 साल पहले शुक्रदेव जी का आश्रम बनाया गया था।

कुरुक्षेत्र का वट वृक्ष vriksh puran

दोस्तों, अब बात करते हैं धर्म नगरी कुरुक्षेत्र में स्थित वट वृक्ष की। यह वही वृक्ष है जिसके नीचे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। देहरादून के फाॅरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट का ऐसा मानना है कि ज्योतिसर vriksh puran नामक स्थान पर स्थापित यह वृक्ष लगभग 5000 साल पुराना है। इस वृक्ष की विशालता को अपनी आंखों से निहारने और अपने कैमरे में कैद करने के लिए आज भी दूर दराज से लोग आते हैं।

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महाबोधी वृक्ष, गया

बिहार राज्य के गया में स्थित इस वट वृक्ष की गिनती दुनिया के सबसे पुराने और पवित्र वट वृक्ष के रूप में होती है। शोधकर्ताओं की मानें तो यह वृक्ष लगभग 2800 साल पुराना है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह वृक्ष बहुत बड़े एरिया में फैला हुआ है।

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